मंगलवार, 26 नवंबर 2013

ईश्वर आज खतरे में है...

तुम लिखती रही हो जीवन ही,

तुम उधेड़ रही हो परतें,

उस रहस्य की ,

तुम समझ रही हो ,

उसकी कुटिल कलाओं को,

तुम स्वीकारने लगी हो ,

उसके आयोजन में,

हर एक दाँव को ,

तुम मुस्कुरा देती हो ,

उसके बन्धन ढ़ीले पड़ जाते हैं ,

देखोगे तुम,

वो हार जायेगा एकदिन , 

ईश्वर आज खतरे में है,

तुम जीत लोगी मृत्यु को भी ,

तुम मुस्कुराना सीख गयी हो,

जैसे मुस्काती है माँ,

बालमन की क्रीड़ाओं देखकर 

तुम जीवन लिखने लगी हो,

तुम लिखती ही रहना....!

                    - अभिषेक शुक्ल 


(शैलजा पाठक : एक बेटी की डायरी के माँ को समर्पित जीवन्त संस्मरण पर मेरी प्रतिक्रिया...एक छोटी सी कविता... !)