कविता
तुम मुझे
बचपन के सुआपंखी दिनों वाली
मैजिक बुक की ही तरह लगती हो
जिसके चटक सफेदी से पुते पन्नों पर
हम बनाया करते लगभग एक जैसे चित्र
भरते कुछ रंग जाने पहचाने
और गढ़ते कहानियाँ
जो भी हम देख पाते
स्कूल की ओर बढ़ता हुआ रामू
दूर आसमान में पतंग धकेलता मोहन
पनघट से गगरी भर ले आती मीना
किसी मोड़हीन सड़क पर
बढ़ते जाते जादुई चित्र
कदम-दर-कदम
पन्नों पर पाँव रखकर
और कह जाते कुछ अधूरी कहानियाँ
कविता
तुम भी तो सँजोए रहती हो
शब्द- चित्र
दिखाती हो सचल दृश्य
मैजिक बुक की ही तरह
आखीर में तुम छोड़ जाती हो एक प्रेरणा
सुखान्त कहानी रचने की ...!!
-अभिषेक शुक्ल
तुम मुझे
बचपन के सुआपंखी दिनों वाली
मैजिक बुक की ही तरह लगती हो
जिसके चटक सफेदी से पुते पन्नों पर
हम बनाया करते लगभग एक जैसे चित्र
भरते कुछ रंग जाने पहचाने
और गढ़ते कहानियाँ
जो भी हम देख पाते
स्कूल की ओर बढ़ता हुआ रामू
दूर आसमान में पतंग धकेलता मोहन
पनघट से गगरी भर ले आती मीना
किसी मोड़हीन सड़क पर
बढ़ते जाते जादुई चित्र
कदम-दर-कदम
पन्नों पर पाँव रखकर
और कह जाते कुछ अधूरी कहानियाँ
कविता
तुम भी तो सँजोए रहती हो
शब्द- चित्र
दिखाती हो सचल दृश्य
मैजिक बुक की ही तरह
आखीर में तुम छोड़ जाती हो एक प्रेरणा
सुखान्त कहानी रचने की ...!!
-अभिषेक शुक्ल