आयु के प्रत्येक प्रहर में,
जीवन की हर एक डगर में,
फूलों - सा मुस्काती रहना,
तुम गीत खुशी के गाती रहना !
पतझड़ में बनकर हरियाली,
फूलों से झुकती हुयी डाली,
सारी बगिया महकाती रहना,
तुम गीत खुशी के गाती रहना !
ह्रदय के निर्जन वन में,
मन के सूने आँगन में,
स्मृति - पुष्प खिलाती रहना,
तुम गीत खुशी के गाती रहना !
अंबुज - दल सम नेत्रों से,
अरुण वर्ण इन अधरों से,
प्रेम सुधा छलकाती रहना,
तुम गीत खुशी के गाती रहना !
प्रिय, तुम श्यामल सुस्मिति से,
नयनों की झिलमिल ज्योति से,
रजत - रागिनी बिखराती रहना,
तुम गीत खुशी के गाती रहना !!
- अभिषेक शुक्ल